1.1.114

चौपाई
रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उडावनिहारी।।
रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।
राम नाम गुन चरित सुहाए। जनम करम अगनित श्रुति गाए।।
जथा अनंत राम भगवाना। तथा कथा कीरति गुन नाना।।
तदपि जथा श्रुत जसि मति मोरी। कहिहउँ देखि प्रीति अति तोरी।।
उमा प्रस्न तव सहज सुहाई। सुखद संतसंमत मोहि भाई।।
एक बात नहि मोहि सोहानी। जदपि मोह बस कहेहु भवानी।।
तुम जो कहा राम कोउ आना। जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना।।

दोहा/सोरठा
कहहि सुनहि अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच।
पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच।।114।।

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