1.1.124

चौपाई
तासु श्राप हरि दीन्ह प्रमाना। कौतुकनिधि कृपाल भगवाना।।
तहाँ जलंधर रावन भयऊ। रन हति राम परम पद दयऊ।।
एक जनम कर कारन एहा। जेहि लागि राम धरी नरदेहा।।
प्रति अवतार कथा प्रभु केरी। सुनु मुनि बरनी कबिन्ह घनेरी।।
नारद श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा।।
गिरिजा चकित भई सुनि बानी। नारद बिष्नुभगत पुनि ग्यानि।।
कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा। का अपराध रमापति कीन्हा।।
यह प्रसंग मोहि कहहु पुरारी। मुनि मन मोह आचरज भारी।।

दोहा/सोरठा
बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ।
जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ।।124(क)।।
कहउँ राम गुन गाथ भरद्वाज सादर सुनहु।
भव भंजन रघुनाथ भजु तुलसी तजि मान मद।।124(ख)।।

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