1.1.16

चौपाई
बंदउँ अवध पुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि।।
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी। ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी।।
सिय निंदक अघ ओघ नसाए। लोक बिसोक बनाइ बसाए।।
बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची। कीरति जासु सकल जग माची।।
प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू। बिस्व सुखद खल कमल तुसारू।।
दसरथ राउ सहित सब रानी। सुकृत सुमंगल मूरति मानी।।
करउँ प्रनाम करम मन बानी। करहु कृपा सुत सेवक जानी।।
जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता। महिमा अवधि राम पितु माता।।

दोहा/सोरठा
बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद।
बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ।।16।।

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