चौपाई
छत्रबंधु तैं बिप्र बोलाई। घालै लिए सहित समुदाई।।
ईस्वर राखा धरम हमारा। जैहसि तैं समेत परिवारा।।
संबत मध्य नास तव होऊ। जलदाता न रहिहि कुल कोऊ।।
नृप सुनि श्राप बिकल अति त्रासा। भै बहोरि बर गिरा अकासा।।
बिप्रहु श्राप बिचारि न दीन्हा। नहिं अपराध भूप कछु कीन्हा।।
चकित बिप्र सब सुनि नभबानी। भूप गयउ जहँ भोजन खानी।।
तहँ न असन नहिं बिप्र सुआरा। फिरेउ राउ मन सोच अपारा।।
सब प्रसंग महिसुरन्ह सुनाई। त्रसित परेउ अवनीं अकुलाई।।
दोहा/सोरठा
भूपति भावी मिटइ नहिं जदपि न दूषन तोर।
किएँ अन्यथा होइ नहिं बिप्रश्राप अति घोर।।174।।