1.1.190

चौपाई
तबहिं रायँ प्रिय नारि बोलाईं। कौसल्यादि तहाँ चलि आई।।
अर्ध भाग कौसल्याहि दीन्हा। उभय भाग आधे कर कीन्हा।।
कैकेई कहँ नृप सो दयऊ। रह्यो सो उभय भाग पुनि भयऊ।।
कौसल्या कैकेई हाथ धरि। दीन्ह सुमित्रहि मन प्रसन्न करि।।
एहि बिधि गर्भसहित सब नारी। भईं हृदयँ हरषित सुख भारी।।
जा दिन तें हरि गर्भहिं आए। सकल लोक सुख संपति छाए।।
मंदिर महँ सब राजहिं रानी। सोभा सील तेज की खानीं।।
सुख जुत कछुक काल चलि गयऊ। जेहिं प्रभु प्रगट सो अवसर भयऊ।।

दोहा/सोरठा
जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल।।190।।

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