चौपाई
प्रात कहा मुनि सन रघुराई। निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई।।
होम करन लागे मुनि झारी। आपु रहे मख कीं रखवारी।।
सुनि मारीच निसाचर क्रोही। लै सहाय धावा मुनिद्रोही।।
बिनु फर बान राम तेहि मारा। सत जोजन गा सागर पारा।।
पावक सर सुबाहु पुनि मारा। अनुज निसाचर कटकु सँघारा।।
मारि असुर द्विज निर्मयकारी। अस्तुति करहिं देव मुनि झारी।।
तहँ पुनि कछुक दिवस रघुराया। रहे कीन्हि बिप्रन्ह पर दाया।।
भगति हेतु बहु कथा पुराना। कहे बिप्र जद्यपि प्रभु जाना।।
तब मुनि सादर कहा बुझाई। चरित एक प्रभु देखिअ जाई।।
धनुषजग्य मुनि रघुकुल नाथा। हरषि चले मुनिबर के साथा।।
आश्रम एक दीख मग माहीं। खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं।।
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी। सकल कथा मुनि कहा बिसेषी।।
दोहा/सोरठा
गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर।
चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर।।210।।