चौपाई
मुनि तव चरन देखि कह राऊ। कहि न सकउँ निज पुन्य प्राभाऊ।।
सुंदर स्याम गौर दोउ भ्राता। आनँदहू के आनँद दाता।।
इन्ह कै प्रीति परसपर पावनि। कहि न जाइ मन भाव सुहावनि।।
सुनहु नाथ कह मुदित बिदेहू। ब्रह्म जीव इव सहज सनेहू।।
पुनि पुनि प्रभुहि चितव नरनाहू। पुलक गात उर अधिक उछाहू।।
म्रुनिहि प्रसंसि नाइ पद सीसू। चलेउ लवाइ नगर अवनीसू।।
सुंदर सदनु सुखद सब काला। तहाँ बासु लै दीन्ह भुआला।।
करि पूजा सब बिधि सेवकाई। गयउ राउ गृह बिदा कराई।।
दोहा/सोरठा
रिषय संग रघुबंस मनि करि भोजनु बिश्रामु।
बैठे प्रभु भ्राता सहित दिवसु रहा भरि जामु।।217।।