1.1.224

चौपाई
पुर पूरब दिसि गे दोउ भाई। जहँ धनुमख हित भूमि बनाई।।
अति बिस्तार चारु गच ढारी। बिमल बेदिका रुचिर सँवारी।।
चहुँ दिसि कंचन मंच बिसाला। रचे जहाँ बेठहिं महिपाला।।
तेहि पाछें समीप चहुँ पासा। अपर मंच मंडली बिलासा।।
कछुक ऊँचि सब भाँति सुहाई। बैठहिं नगर लोग जहँ जाई।।
तिन्ह के निकट बिसाल सुहाए। धवल धाम बहुबरन बनाए।।
जहँ बैंठैं देखहिं सब नारी। जथा जोगु निज कुल अनुहारी।।
पुर बालक कहि कहि मृदु बचना। सादर प्रभुहि देखावहिं रचना।।

दोहा/सोरठा
सब सिसु एहि मिस प्रेमबस परसि मनोहर गात।
तन पुलकहिं अति हरषु हियँ देखि देखि दोउ भ्रात।।224।।

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