1.1.240

चौपाई
सीय स्वयंबरु देखिअ जाई। ईसु काहि धौं देइ बड़ाई।।
लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई।।
हरषे मुनि सब सुनि बर बानी। दीन्हि असीस सबहिं सुखु मानी।।
पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला। देखन चले धनुषमख साला।।
रंगभूमि आए दोउ भाई। असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई।।
चले सकल गृह काज बिसारी। बाल जुबान जरठ नर नारी।।
देखी जनक भीर भै भारी। सुचि सेवक सब लिए हँकारी।।
तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू। आसन उचित देहू सब काहू।।

दोहा/सोरठा
कहि मृदु बचन बिनीत तिन्ह बैठारे नर नारि।
उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि।।240।।

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