1.1.254

चौपाई
लखन सकोप बचन जे बोले। डगमगानि महि दिग्गज डोले।।
सकल लोक सब भूप डेराने। सिय हियँ हरषु जनकु सकुचाने।।
गुर रघुपति सब मुनि मन माहीं। मुदित भए पुनि पुनि पुलकाहीं।।
सयनहिं रघुपति लखनु नेवारे। प्रेम समेत निकट बैठारे।।
बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी।।
उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा।।
सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा। हरषु बिषादु न कछु उर आवा।।
ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएँ। ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ।।

दोहा/सोरठा
उदित उदयगिरि मंच पर रघुबर बालपतंग।
बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग।।254।।

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