चौपाई
पुर अरु ब्योम बाजने बाजे। खल भए मलिन साधु सब राजे।।
सुर किंनर नर नाग मुनीसा। जय जय जय कहि देहिं असीसा।।
नाचहिं गावहिं बिबुध बधूटीं। बार बार कुसुमांजलि छूटीं।।
जहँ तहँ बिप्र बेदधुनि करहीं। बंदी बिरदावलि उच्चरहीं।।
महि पाताल नाक जसु ब्यापा। राम बरी सिय भंजेउ चापा।।
करहिं आरती पुर नर नारी। देहिं निछावरि बित्त बिसारी।।
सोहति सीय राम कै जौरी। छबि सिंगारु मनहुँ एक ठोरी।।
सखीं कहहिं प्रभुपद गहु सीता। करति न चरन परस अति भीता।।
दोहा/सोरठा
गौतम तिय गति सुरति करि नहिं परसति पग पानि।
मन बिहसे रघुबंसमनि प्रीति अलौकिक जानि।।265।।