1.1.269

चौपाई
देखत भृगुपति बेषु कराला। उठे सकल भय बिकल भुआला।।
पितु समेत कहि कहि निज नामा। लगे करन सब दंड प्रनामा।।
जेहि सुभायँ चितवहिं हितु जानी। सो जानइ जनु आइ खुटानी।।
जनक बहोरि आइ सिरु नावा। सीय बोलाइ प्रनामु करावा।।
आसिष दीन्हि सखीं हरषानीं। निज समाज लै गई सयानीं।।
बिस्वामित्रु मिले पुनि आई। पद सरोज मेले दोउ भाई।।
रामु लखनु दसरथ के ढोटा। दीन्हि असीस देखि भल जोटा।।
रामहि चितइ रहे थकि लोचन। रूप अपार मार मद मोचन।।

दोहा/सोरठा
बहुरि बिलोकि बिदेह सन कहहु काह अति भीर।।
पूछत जानि अजान जिमि ब्यापेउ कोपु सरीर।।269।।

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