1.1.340

चौपाई
नृप करि बिनय महाजन फेरे। सादर सकल मागने टेरे।।
भूषन बसन बाजि गज दीन्हे। प्रेम पोषि ठाढ़े सब कीन्हे।।
बार बार बिरिदावलि भाषी। फिरे सकल रामहि उर राखी।।
बहुरि बहुरि कोसलपति कहहीं। जनकु प्रेमबस फिरै न चहहीं।।
पुनि कह भूपति बचन सुहाए। फिरिअ महीस दूरि बड़ि आए।।
राउ बहोरि उतरि भए ठाढ़े। प्रेम प्रबाह बिलोचन बाढ़े।।
तब बिदेह बोले कर जोरी। बचन सनेह सुधाँ जनु बोरी।।
करौ कवन बिधि बिनय बनाई। महाराज मोहि दीन्हि बड़ाई।।

दोहा/सोरठा
कोसलपति समधी सजन सनमाने सब भाँति।
मिलनि परसपर बिनय अति प्रीति न हृदयँ समाति।।340।।

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