चौपाई
एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं।।
संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी।।
रामकथा मुनीबर्ज बखानी। सुनी महेस परम सुखु मानी।।
रिषि पूछी हरिभगति सुहाई। कही संभु अधिकारी पाई।।
कहत सुनत रघुपति गुन गाथा। कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा।।
मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी। चले भवन सँग दच्छकुमारी।।
तेहि अवसर भंजन महिभारा। हरि रघुबंस लीन्ह अवतारा।।
पिता बचन तजि राजु उदासी। दंडक बन बिचरत अबिनासी।।
दोहा/सोरठा
ह्दयँ बिचारत जात हर केहि बिधि दरसनु होइ।
गुप्त रुप अवतरेउ प्रभु गएँ जान सबु कोइ।।48(क)।।
संकर उर अति छोभु सती न जानहिं मरमु सोइ।।
तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची।।48(ख)।।