चौपाई
रावन मरन मनुज कर जाचा। प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा।।
जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा। करत बिचारु न बनत बनावा।।
एहि बिधि भए सोचबस ईसा। तेहि समय जाइ दससीसा।।
लीन्ह नीच मारीचहि संगा। भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा।।
करि छलु मूढ़ हरी बैदेही। प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही।।
मृग बधि बन्धु सहित हरि आए। आश्रमु देखि नयन जल छाए।।
बिरह बिकल नर इव रघुराई। खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई।।
कबहूँ जोग बियोग न जाकें। देखा प्रगट बिरह दुख ताकें।।
दोहा/सोरठा
अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन।।49।।