1.2.105

चौपाई
तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू। लखन सखाँ सब कीन्ह सुपासू।।
प्रात प्रातकृत करि रधुसाई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई।।
सचिव सत्य श्रध्दा प्रिय नारी। माधव सरिस मीतु हितकारी।।
चारि पदारथ भरा भँडारु। पुन्य प्रदेस देस अति चारु।।
छेत्र अगम गढ़ु गाढ़ सुहावा। सपनेहुँ नहिं प्रतिपच्छिन्ह पावा।।
सेन सकल तीरथ बर बीरा। कलुष अनीक दलन रनधीरा।।
संगमु सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा।।
चवँर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुख दारिद भंगा।।

दोहा/सोरठा
सेवहिं सुकृति साधु सुचि पावहिं सब मनकाम।
बंदी बेद पुरान गन कहहिं बिमल गुन ग्राम।।105।।

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