चौपाई
कत सिख देइ हमहि कोउ माई। गालु करब केहि कर बलु पाई।।
रामहि छाड़ि कुसल केहि आजू। जेहि जनेसु देइ जुबराजू।।
भयउ कौसिलहि बिधि अति दाहिन। देखत गरब रहत उर नाहिन।।
देखेहु कस न जाइ सब सोभा। जो अवलोकि मोर मनु छोभा।।
पूतु बिदेस न सोचु तुम्हारें। जानति हहु बस नाहु हमारें।।
नीद बहुत प्रिय सेज तुराई। लखहु न भूप कपट चतुराई।।
सुनि प्रिय बचन मलिन मनु जानी। झुकी रानि अब रहु अरगानी।।
पुनि अस कबहुँ कहसि घरफोरी। तब धरि जीभ कढ़ावउँ तोरी।।
दोहा/सोरठा
काने खोरे कूबरे कुटिल कुचाली जानि।
तिय बिसेषि पुनि चेरि कहि भरतमातु मुसुकानि।।14।।