चौपाई
जोगवहिं प्रभु सिय लखनहिं कैसें। पलक बिलोचन गोलक जैसें।।
सेवहिं लखनु सीय रघुबीरहि। जिमि अबिबेकी पुरुष सरीरहि।।
एहि बिधि प्रभु बन बसहिं सुखारी। खग मृग सुर तापस हितकारी।।
कहेउँ राम बन गवनु सुहावा। सुनहु सुमंत्र अवध जिमि आवा।।
फिरेउ निषादु प्रभुहि पहुँचाई। सचिव सहित रथ देखेसि आई।।
मंत्री बिकल बिलोकि निषादू। कहि न जाइ जस भयउ बिषादू।।
राम राम सिय लखन पुकारी। परेउ धरनितल ब्याकुल भारी।।
देखि दखिन दिसि हय हिहिनाहीं। जनु बिनु पंख बिहग अकुलाहीं।।
दोहा/सोरठा
नहिं तृन चरहिं पिअहिं जलु मोचहिं लोचन बारि।
ब्याकुल भए निषाद सब रघुबर बाजि निहारि।।142।।