1.2.144

चौपाई
गुह सारथिहि फिरेउ पहुँचाई। बिरहु बिषादु बरनि नहिं जाई।।
चले अवध लेइ रथहि निषादा। होहि छनहिं छन मगन बिषादा।।
सोच सुमंत्र बिकल दुख दीना। धिग जीवन रघुबीर बिहीना।।
रहिहि न अंतहुँ अधम सरीरू। जसु न लहेउ बिछुरत रघुबीरू।।
भए अजस अघ भाजन प्राना। कवन हेतु नहिं करत पयाना।।
अहह मंद मनु अवसर चूका। अजहुँ न हृदय होत दुइ टूका।।
मीजि हाथ सिरु धुनि पछिताई। मनहँ कृपन धन रासि गवाँई।।
बिरिद बाँधि बर बीरु कहाई। चलेउ समर जनु सुभट पराई।।

दोहा/सोरठा
बिप्र बिबेकी बेदबिद संमत साधु सुजाति।
जिमि धोखें मदपान कर सचिव सोच तेहि भाँति।।144।।

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