1.2.146

चौपाई
पुछिहहिं दीन दुखित सब माता। कहब काह मैं तिन्हहि बिधाता।।
पूछिहि जबहिं लखन महतारी। कहिहउँ कवन सँदेस सुखारी।।
राम जननि जब आइहि धाई। सुमिरि बच्छु जिमि धेनु लवाई।।
पूँछत उतरु देब मैं तेही। गे बनु राम लखनु बैदेही।।
जोइ पूँछिहि तेहि ऊतरु देबा।जाइ अवध अब यहु सुखु लेबा।।
पूँछिहि जबहिं राउ दुख दीना। जिवनु जासु रघुनाथ अधीना।।
देहउँ उतरु कौनु मुहु लाई। आयउँ कुसल कुअँर पहुँचाई।।
सुनत लखन सिय राम सँदेसू। तृन जिमि तनु परिहरिहि नरेसू।।

दोहा/सोरठा
-ह्रदउ न बिदरेउ पंक जिमि बिछुरत प्रीतमु नीरु।।
जानत हौं मोहि दीन्ह बिधि यहु जातना सरीरु।।146।।

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