चौपाई
अति आरति सब पूँछहिं रानी। उतरु न आव बिकल भइ बानी।।
सुनइ न श्रवन नयन नहिं सूझा। कहहु कहाँ नृप तेहि तेहि बूझा।।
दासिन्ह दीख सचिव बिकलाई। कौसल्या गृहँ गईं लवाई।।
जाइ सुमंत्र दीख कस राजा। अमिअ रहित जनु चंदु बिराजा।।
आसन सयन बिभूषन हीना। परेउ भूमितल निपट मलीना।।
लेइ उसासु सोच एहि भाँती। सुरपुर तें जनु खँसेउ जजाती।।
लेत सोच भरि छिनु छिनु छाती। जनु जरि पंख परेउ संपाती।।
राम राम कह राम सनेही। पुनि कह राम लखन बैदेही।।
दोहा/सोरठा
देखि सचिवँ जय जीव कहि कीन्हेउ दंड प्रनामु।
सुनत उठेउ ब्याकुल नृपति कहु सुमंत्र कहँ रामु।।148।।