चौपाई
बेगहु भाइहु सजहु सँजोऊ। सुनि रजाइ कदराइ न कोऊ।।
भलेहिं नाथ सब कहहिं सहरषा। एकहिं एक बढ़ावइ करषा।।
चले निषाद जोहारि जोहारी। सूर सकल रन रूचइ रारी।।
सुमिरि राम पद पंकज पनहीं। भाथीं बाँधि चढ़ाइन्हि धनहीं।।
अँगरी पहिरि कूँड़ि सिर धरहीं। फरसा बाँस सेल सम करहीं।।
एक कुसल अति ओड़न खाँड़े। कूदहि गगन मनहुँ छिति छाँड़े।।
निज निज साजु समाजु बनाई। गुह राउतहि जोहारे जाई।।
देखि सुभट सब लायक जाने। लै लै नाम सकल सनमाने।।
दोहा/सोरठा
भाइहु लावहु धोख जनि आजु काज बड़ मोहि।
सुनि सरोष बोले सुभट बीर अधीर न होहि।।191।।