1.2.236

चौपाई
बन प्रदेस मुनि बास घनेरे। जनु पुर नगर गाउँ गन खेरे।।
बिपुल बिचित्र बिहग मृग नाना। प्रजा समाजु न जाइ बखाना।।
खगहा करि हरि बाघ बराहा। देखि महिष बृष साजु सराहा।।
बयरु बिहाइ चरहिं एक संगा। जहँ तहँ मनहुँ सेन चतुरंगा।।
झरना झरहिं मत्त गज गाजहिं। मनहुँ निसान बिबिधि बिधि बाजहिं।।
चक चकोर चातक सुक पिक गन। कूजत मंजु मराल मुदित मन।।
अलिगन गावत नाचत मोरा। जनु सुराज मंगल चहु ओरा।।
बेलि बिटप तृन सफल सफूला। सब समाजु मुद मंगल मूला।।

दोहा/सोरठा
राम सैल सोभा निरखि भरत हृदयँ अति पेमु।
तापस तप फलु पाइ जिमि सुखी सिरानें नेमु।।236।।

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