1.2.311

चौपाई
कहत धरम इतिहास सप्रीती। भयउ भोरु निसि सो सुख बीती।।
नित्य निबाहि भरत दोउ भाई। राम अत्रि गुर आयसु पाई।।
सहित समाज साज सब सादें। चले राम बन अटन पयादें।।
कोमल चरन चलत बिनु पनहीं। भइ मृदु भूमि सकुचि मन मनहीं।।
कुस कंटक काँकरीं कुराईं। कटुक कठोर कुबस्तु दुराईं।।
महि मंजुल मृदु मारग कीन्हे। बहत समीर त्रिबिध सुख लीन्हे।।
सुमन बरषि सुर घन करि छाहीं। बिटप फूलि फलि तृन मृदुताहीं।।
मृग बिलोकि खग बोलि सुबानी। सेवहिं सकल राम प्रिय जानी।।

दोहा/सोरठा
सुलभ सिद्धि सब प्राकृतहु राम कहत जमुहात।
राम प्रान प्रिय भरत कहुँ यह न होइ बड़ि बात।।311।।

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