चौपाई
राजधरम सरबसु एतनोई। जिमि मन माहँ मनोरथ गोई।।
बंधु प्रबोधु कीन्ह बहु भाँती। बिनु अधार मन तोषु न साँती।।
भरत सील गुर सचिव समाजू। सकुच सनेह बिबस रघुराजू।।
प्रभु करि कृपा पाँवरीं दीन्हीं। सादर भरत सीस धरि लीन्हीं।।
चरनपीठ करुनानिधान के। जनु जुग जामिक प्रजा प्रान के।।
संपुट भरत सनेह रतन के। आखर जुग जुन जीव जतन के।।
कुल कपाट कर कुसल करम के। बिमल नयन सेवा सुधरम के।।
भरत मुदित अवलंब लहे तें। अस सुख जस सिय रामु रहे तें।।
दोहा/सोरठा
मागेउ बिदा प्रनामु करि राम लिए उर लाइ।
लोग उचाटे अमरपति कुटिल कुअवसरु पाइ।।316।।