1.2.35

चौपाई
ब्याकुल राउ सिथिल सब गाता। करिनि कलपतरु मनहुँ निपाता।।
कंठु सूख मुख आव न बानी। जनु पाठीनु दीन बिनु पानी।।
पुनि कह कटु कठोर कैकेई। मनहुँ घाय महुँ माहुर देई।।
जौं अंतहुँ अस करतबु रहेऊ। मागु मागु तुम्ह केहिं बल कहेऊ।।
दुइ कि होइ एक समय भुआला। हँसब ठठाइ फुलाउब गाला।।
दानि कहाउब अरु कृपनाई। होइ कि खेम कुसल रौताई।।
छाड़हु बचनु कि धीरजु धरहू। जनि अबला जिमि करुना करहू।।
तनु तिय तनय धामु धनु धरनी। सत्यसंध कहुँ तृन सम बरनी।।

दोहा/सोरठा
मरम बचन सुनि राउ कह कहु कछु दोषु न तोर।
लागेउ तोहि पिसाच जिमि कालु कहावत मोर।।35।।

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