चौपाई
राम राम रट बिकल भुआलू। जनु बिनु पंख बिहंग बेहालू।।
हृदयँ मनाव भोरु जनि होई। रामहि जाइ कहै जनि कोई।।
उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर। अवध बिलोकि सूल होइहि उर।।
भूप प्रीति कैकइ कठिनाई। उभय अवधि बिधि रची बनाई।।
बिलपत नृपहि भयउ भिनुसारा। बीना बेनु संख धुनि द्वारा।।
पढ़हिं भाट गुन गावहिं गायक। सुनत नृपहि जनु लागहिं सायक।।
मंगल सकल सोहाहिं न कैसें। सहगामिनिहि बिभूषन जैसें।।
तेहिं निसि नीद परी नहि काहू। राम दरस लालसा उछाहू।।
दोहा/सोरठा
द्वार भीर सेवक सचिव कहहिं उदित रबि देखि।
जागेउ अजहुँ न अवधपति कारनु कवनु बिसेषि।।37।।