1.2.39

चौपाई
आनहु रामहि बेगि बोलाई। समाचार तब पूँछेहु आई।।
चलेउ सुमंत्र राय रूख जानी। लखी कुचालि कीन्हि कछु रानी।।
सोच बिकल मग परइ न पाऊ। रामहि बोलि कहिहि का राऊ।।
उर धरि धीरजु गयउ दुआरें। पूछँहिं सकल देखि मनु मारें।।
समाधानु करि सो सबही का। गयउ जहाँ दिनकर कुल टीका।।
रामु सुमंत्रहि आवत देखा। आदरु कीन्ह पिता सम लेखा।।
निरखि बदनु कहि भूप रजाई। रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई।।
रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं। देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं।।

दोहा/सोरठा
जाइ दीख रघुबंसमनि नरपति निपट कुसाजु।।
सहमि परेउ लखि सिंघिनिहि मनहुँ बृद्ध गजराजु।।39।।

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