1.2.57

चौपाई
देव पितर सब तुन्हहि गोसाई। राखहुँ पलक नयन की नाई।।
अवधि अंबु प्रिय परिजन मीना। तुम्ह करुनाकर धरम धुरीना।।
अस बिचारि सोइ करहु उपाई। सबहि जिअत जेहिं भेंटेहु आई।।
जाहु सुखेन बनहि बलि जाऊँ। करि अनाथ जन परिजन गाऊँ।।
सब कर आजु सुकृत फल बीता। भयउ कराल कालु बिपरीता।।
बहुबिधि बिलपि चरन लपटानी। परम अभागिनि आपुहि जानी।।
दारुन दुसह दाहु उर ब्यापा। बरनि न जाहिं बिलाप कलापा।।
राम उठाइ मातु उर लाई। कहि मृदु बचन बहुरि समुझाई।।

दोहा/सोरठा
समाचार तेहि समय सुनि सीय उठी अकुलाइ।
जाइ सासु पद कमल जुग बंदि बैठि सिरु नाइ।।57।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: