1.2.76

चौपाई
गए लखनु जहँ जानकिनाथू। भे मन मुदित पाइ प्रिय साथू।।
बंदि राम सिय चरन सुहाए। चले संग नृपमंदिर आए।।
कहहिं परसपर पुर नर नारी। भलि बनाइ बिधि बात बिगारी।।
तन कृस दुखु बदन मलीने। बिकल मनहुँ माखी मधु छीने।।
कर मीजहिं सिरु धुनि पछिताहीं। जनु बिन पंख बिहग अकुलाहीं।।
भइ बड़ि भीर भूप दरबारा। बरनि न जाइ बिषादु अपारा।।
सचिवँ उठाइ राउ बैठारे। कहि प्रिय बचन रामु पगु धारे।।
सिय समेत दोउ तनय निहारी। ब्याकुल भयउ भूमिपति भारी।।

दोहा/सोरठा
सीय सहित सुत सुभग दोउ देखि देखि अकुलाइ।
बारहिं बार सनेह बस राउ लेइ उर लाइ।।76।।

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