1.2.84

चौपाई
राम बियोग बिकल सब ठाढ़े। जहँ तहँ मनहुँ चित्र लिखि काढ़े।।
नगरु सफल बनु गहबर भारी। खग मृग बिपुल सकल नर नारी।।
बिधि कैकेई किरातिनि कीन्ही। जेंहि दव दुसह दसहुँ दिसि दीन्ही।।
सहि न सके रघुबर बिरहागी। चले लोग सब ब्याकुल भागी।।
सबहिं बिचार कीन्ह मन माहीं। राम लखन सिय बिनु सुखु नाहीं।।
जहाँ रामु तहँ सबुइ समाजू। बिनु रघुबीर अवध नहिं काजू।।
चले साथ अस मंत्रु दृढ़ाई। सुर दुर्लभ सुख सदन बिहाई।।
राम चरन पंकज प्रिय जिन्हही। बिषय भोग बस करहिं कि तिन्हही।।

दोहा/सोरठा
बालक बृद्ध बिहाइ गृँह लगे लोग सब साथ।
तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ।।84।।

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