1.2.86

चौपाई
जागे सकल लोग भएँ भोरू। गे रघुनाथ भयउ अति सोरू।।
रथ कर खोज कतहहुँ नहिं पावहिं। राम राम कहि चहु दिसि धावहिं।।
मनहुँ बारिनिधि बूड़ जहाजू। भयउ बिकल बड़ बनिक समाजू।।
एकहि एक देंहिं उपदेसू। तजे राम हम जानि कलेसू।।
निंदहिं आपु सराहहिं मीना। धिग जीवनु रघुबीर बिहीना।।
जौं पै प्रिय बियोगु बिधि कीन्हा। तौ कस मरनु न मागें दीन्हा।।
एहि बिधि करत प्रलाप कलापा। आए अवध भरे परितापा।।
बिषम बियोगु न जाइ बखाना। अवधि आस सब राखहिं प्राना।।

दोहा/सोरठा
राम दरस हित नेम ब्रत लगे करन नर नारि।
मनहुँ कोक कोकी कमल दीन बिहीन तमारि।।86।।

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