1.2.91

चौपाई
बिबिध बसन उपधान तुराई। छीर फेन मृदु बिसद सुहाई।।
तहँ सिय रामु सयन निसि करहीं। निज छबि रति मनोज मदु हरहीं।।
ते सिय रामु साथरीं सोए। श्रमित बसन बिनु जाहिं न जोए।।
मातु पिता परिजन पुरबासी। सखा सुसील दास अरु दासी।।
जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाई। महि सोवत तेइ राम गोसाईं।।
पिता जनक जग बिदित प्रभाऊ। ससुर सुरेस सखा रघुराऊ।।
रामचंदु पति सो बैदेही। सोवत महि बिधि बाम न केही।।
सिय रघुबीर कि कानन जोगू। करम प्रधान सत्य कह लोगू।।

दोहा/सोरठा
कैकयनंदिनि मंदमति कठिन कुटिलपनु कीन्ह।
जेहीं रघुनंदन जानकिहि सुख अवसर दुखु दीन्ह।।91।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: