1.3.16

चौपाई
धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना। ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना।।
जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई। सो मम भगति भगत सुखदाई।।
सो सुतंत्र अवलंब न आना। तेहि आधीन ग्यान बिग्याना।।
भगति तात अनुपम सुखमूला। मिलइ जो संत होइँ अनुकूला।।
भगति कि साधन कहउँ बखानी। सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी।।
प्रथमहिं बिप्र चरन अति प्रीती। निज निज कर्म निरत श्रुति रीती।।
एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा। तब मम धर्म उपज अनुरागा।।
श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं। मम लीला रति अति मन माहीं।।
संत चरन पंकज अति प्रेमा। मन क्रम बचन भजन दृढ़ नेमा।।
गुरु पितु मातु बंधु पति देवा। सब मोहि कहँ जाने दृढ़ सेवा।।
मम गुन गावत पुलक सरीरा। गदगद गिरा नयन बह नीरा।।
काम आदि मद दंभ न जाकें। तात निरंतर बस मैं ताकें।।

दोहा/सोरठा
बचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं निःकाम।।
तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा बिश्राम।।16।।

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