1.3.20

छंद
तब चले जान बबान कराल। फुंकरत जनु बहु ब्याल।।
कोपेउ समर श्रीराम। चले बिसिख निसित निकाम।।
अवलोकि खरतर तीर। मुरि चले निसिचर बीर।।
भए क्रुद्ध तीनिउ भाइ। जो भागि रन ते जाइ।।
तेहि बधब हम निज पानि। फिरे मरन मन महुँ ठानि।।
आयुध अनेक प्रकार। सनमुख ते करहिं प्रहार।।
रिपु परम कोपे जानि। प्रभु धनुष सर संधानि।।
छाँड़े बिपुल नाराच। लगे कटन बिकट पिसाच।।
उर सीस भुज कर चरन। जहँ तहँ लगे महि परन।।
चिक्करत लागत बान। धर परत कुधर समान।।
भट कटत तन सत खंड। पुनि उठत करि पाषंड।।
नभ उड़त बहु भुज मुंड। बिनु मौलि धावत रुंड।।
खग कंक काक सृगाल। कटकटहिं कठिन कराल।।
कटकटहिं ज़ंबुक भूत प्रेत पिसाच खर्पर संचहीं।
बेताल बीर कपाल ताल बजाइ जोगिनि नंचहीं।।
रघुबीर बान प्रचंड खंडहिं भटन्ह के उर भुज सिरा।
जहँ तहँ परहिं उठि लरहिं धर धरु धरु करहिं भयकर गिरा।।
अंतावरीं गहि उड़त गीध पिसाच कर गहि धावहीं।।
संग्राम पुर बासी मनहुँ बहु बाल गुड़ी उड़ावहीं।।
मारे पछारे उर बिदारे बिपुल भट कहँरत परे।
अवलोकि निज दल बिकल भट तिसिरादि खर दूषन फिरे।।
सर सक्ति तोमर परसु सूल कृपान एकहि बारहीं।
करि कोप श्रीरघुबीर पर अगनित निसाचर डारहीं।।
प्रभु निमिष महुँ रिपु सर निवारि पचारि डारे सायका।
दस दस बिसिख उर माझ मारे सकल निसिचर नायका।।
महि परत उठि भट भिरत मरत न करत माया अति घनी।
सुर डरत चौदह सहस प्रेत बिलोकि एक अवध धनी।।
सुर मुनि सभय प्रभु देखि मायानाथ अति कौतुक कर् यो।
देखहि परसपर राम करि संग्राम रिपुदल लरि मर् यो।।

दोहा/सोरठा
राम राम कहि तनु तजहिं पावहिं पद निर्बान।
करि उपाय रिपु मारे छन महुँ कृपानिधान।।20(क)।।
हरषित बरषहिं सुमन सुर बाजहिं गगन निसान।
अस्तुति करि करि सब चले सोभित बिबिध बिमान।।20(ख)।।

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