चौपाई
दसमुख सकल कथा तेहि आगें। कही सहित अभिमान अभागें।।
होहु कपट मृग तुम्ह छलकारी। जेहि बिधि हरि आनौ नृपनारी।।
तेहिं पुनि कहा सुनहु दससीसा। ते नररुप चराचर ईसा।।
तासों तात बयरु नहिं कीजे। मारें मरिअ जिआएँ जीजै।।
मुनि मख राखन गयउ कुमारा। बिनु फर सर रघुपति मोहि मारा।।
सत जोजन आयउँ छन माहीं। तिन्ह सन बयरु किएँ भल नाहीं।।
भइ मम कीट भृंग की नाई। जहँ तहँ मैं देखउँ दोउ भाई।।
जौं नर तात तदपि अति सूरा। तिन्हहि बिरोधि न आइहि पूरा।।
दोहा/सोरठा
जेहिं ताड़का सुबाहु हति खंडेउ हर कोदंड।।
खर दूषन तिसिरा बधेउ मनुज कि अस बरिबंड।।25।।