चौपाई
बिहँसा नारि बचन सुनि काना। अहो मोह महिमा बलवाना।।
नारि सुभाउ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं।।
साहस अनृत चपलता माया। भय अबिबेक असौच अदाया।।
रिपु कर रुप सकल तैं गावा। अति बिसाल भय मोहि सुनावा।।
सो सब प्रिया सहज बस मोरें। समुझि परा प्रसाद अब तोरें।।
जानिउँ प्रिया तोरि चतुराई। एहि बिधि कहहु मोरि प्रभुताई।।
तव बतकही गूढ़ मृगलोचनि। समुझत सुखद सुनत भय मोचनि।।
मंदोदरि मन महुँ अस ठयऊ। पियहि काल बस मतिभ्रम भयऊ।।
दोहा/सोरठा
एहि बिधि करत बिनोद बहु प्रात प्रगट दसकंध।
सहज असंक लंकपति सभाँ गयउ मद अंध।।16(क)।।
फूलह फरइ न बेत जदपि सुधा बरषहिं जलद।
मूरुख हृदयँ न चेत जौं गुर मिलहिं बिरंचि सम।।16(ख)।।