1.6.60

चौपाई
तात कुसल कहु सुखनिधान की। सहित अनुज अरु मातु जानकी।।
कपि सब चरित समास बखाने। भए दुखी मन महुँ पछिताने।।
अहह दैव मैं कत जग जायउँ। प्रभु के एकहु काज न आयउँ।।
जानि कुअवसरु मन धरि धीरा। पुनि कपि सन बोले बलबीरा।।
तात गहरु होइहि तोहि जाता। काजु नसाइहि होत प्रभाता।।
चढ़ु मम सायक सैल समेता। पठवौं तोहि जहँ कृपानिकेता।।
सुनि कपि मन उपजा अभिमाना। मोरें भार चलिहि किमि बाना।।
राम प्रभाव बिचारि बहोरी। बंदि चरन कह कपि कर जोरी।।

दोहा/सोरठा
तव प्रताप उर राखि प्रभु जेहउँ नाथ तुरंत।
अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत।।60(क)।।
भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार।।60(ख)।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: