चौपाई
भल न कीन्ह तैं निसिचर नाहा। अब मोहि आइ जगाएहि काहा।।
अजहूँ तात त्यागि अभिमाना। भजहु राम होइहि कल्याना।।
हैं दससीस मनुज रघुनायक। जाके हनूमान से पायक।।
अहह बंधु तैं कीन्हि खोटाई। प्रथमहिं मोहि न सुनाएहि आई।।
कीन्हेहु प्रभू बिरोध तेहि देवक। सिव बिरंचि सुर जाके सेवक।।
नारद मुनि मोहि ग्यान जो कहा। कहतेउँ तोहि समय निरबहा।।
अब भरि अंक भेंटु मोहि भाई। लोचन सूफल करौ मैं जाई।।
स्याम गात सरसीरुह लोचन। देखौं जाइ ताप त्रय मोचन।।
दोहा/सोरठा
राम रूप गुन सुमिरत मगन भयउ छन एक।
रावन मागेउ कोटि घट मद अरु महिष अनेक।।63।।