1.6.97

चौपाई
प्रभु छन महुँ माया सब काटी। जिमि रबि उएँ जाहिं तम फाटी।।
रावनु एकु देखि सुर हरषे। फिरे सुमन बहु प्रभु पर बरषे।।
भुज उठाइ रघुपति कपि फेरे। फिरे एक एकन्ह तब टेरे।।
प्रभु बलु पाइ भालु कपि धाए। तरल तमकि संजुग महि आए।।
अस्तुति करत देवतन्हि देखें। भयउँ एक मैं इन्ह के लेखें।।
सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल। अस कहि कोपि गगन पर धायल।।
हाहाकार करत सुर भागे। खलहु जाहु कहँ मोरें आगे।।
देखि बिकल सुर अंगद धायो। कूदि चरन गहि भूमि गिरायो।।

छंद
गहि भूमि पार् यो लात मार् यो बालिसुत प्रभु पहिं गयो।
संभारि उठि दसकंठ घोर कठोर रव गर्जत भयो।।
करि दाप चाप चढ़ाइ दस संधानि सर बहु बरषई।
किए सकल भट घायल भयाकुल देखि निज बल हरषई।।

दोहा/सोरठा
तब रघुपति रावन के सीस भुजा सर चाप।
काटे बहुत बढ़े पुनि जिमि तीरथ कर पाप। 97।।

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