1.6.98

चौपाई
सिर भुज बाढ़ि देखि रिपु केरी। भालु कपिन्ह रिस भई घनेरी।।
मरत न मूढ़ कटेउ भुज सीसा। धाए कोपि भालु भट कीसा।।
बालितनय मारुति नल नीला। बानरराज दुबिद बलसीला।।
बिटप महीधर करहिं प्रहारा। सोइ गिरि तरु गहि कपिन्ह सो मारा।।
एक नखन्हि रिपु बपुष बिदारी। भअगि चलहिं एक लातन्ह मारी।।
तब नल नील सिरन्हि चढ़ि गयऊ। नखन्हि लिलार बिदारत भयऊ।।
रुधिर देखि बिषाद उर भारी। तिन्हहि धरन कहुँ भुजा पसारी।।
गहे न जाहिं करन्हि पर फिरहीं। जनु जुग मधुप कमल बन चरहीं।।
कोपि कूदि द्वौ धरेसि बहोरी। महि पटकत भजे भुजा मरोरी।।
पुनि सकोप दस धनु कर लीन्हे। सरन्हि मारि घायल कपि कीन्हे।।
हनुमदादि मुरुछित करि बंदर। पाइ प्रदोष हरष दसकंधर।।
मुरुछित देखि सकल कपि बीरा। जामवंत धायउ रनधीरा।।
संग भालु भूधर तरु धारी। मारन लगे पचारि पचारी।।
भयउ क्रुद्ध रावन बलवाना। गहि पद महि पटकइ भट नाना।।
देखि भालुपति निज दल घाता। कोपि माझ उर मारेसि लाता।।

छंद
उर लात घात प्रचंड लागत बिकल रथ ते महि परा।
गहि भालु बीसहुँ कर मनहुँ कमलन्हि बसे निसि मधुकरा।।
मुरुछित बिलोकि बहोरि पद हति भालुपति प्रभु पहिं गयौ।
निसि जानि स्यंदन घालि तेहि तब सूत जतनु करत भयो।।

दोहा/सोरठा
मुरुछा बिगत भालु कपि सब आए प्रभु पास।
निसिचर सकल रावनहि घेरि रहे अति त्रास।।98।।

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