1.7.52

चौपाई
गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा।।
राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा।।
राम अनंत अनंत गुनानी। जन्म कर्म अनंत नामानी।।
जल सीकर महि रज गनि जाहीं। रघुपति चरित न बरनि सिराहीं।।
बिमल कथा हरि पद दायनी। भगति होइ सुनि अनपायनी।।
उमा कहिउँ सब कथा सुहाई। जो भुसुंडि खगपतिहि सुनाई।।
कछुक राम गुन कहेउँ बखानी। अब का कहौं सो कहहु भवानी।।
सुनि सुभ कथा उमा हरषानी। बोली अति बिनीत मृदु बानी।।
धन्य धन्य मैं धन्य पुरारी। सुनेउँ राम गुन भव भय हारी।।

दोहा/सोरठा
तुम्हरी कृपाँ कृपायतन अब कृतकृत्य न मोह।
जानेउँ राम प्रताप प्रभु चिदानंद संदोह।।52(क)।।
नाथ तवानन ससि स्रवत कथा सुधा रघुबीर।
श्रवन पुटन्हि मन पान करि नहिं अघात मतिधीर।।52(ख)।।

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