चौपाई
राम कथा गिरिजा मैं बरनी। कलि मल समनि मनोमल हरनी।।
संसृति रोग सजीवन मूरी। राम कथा गावहिं श्रुति सूरी।।
एहि महँ रुचिर सप्त सोपाना। रघुपति भगति केर पंथाना।।
अति हरि कृपा जाहि पर होई। पाउँ देइ एहिं मारग सोई।।
मन कामना सिद्धि नर पावा। जे यह कथा कपट तजि गावा।।
कहहिं सुनहिं अनुमोदन करहीं। ते गोपद इव भवनिधि तरहीं।।
सुनि सब कथा हृदयँ अति भाई। गिरिजा बोली गिरा सुहाई।।
नाथ कृपाँ मम गत संदेहा। राम चरन उपजेउ नव नेहा।।