devanagari

1.1.10

चौपाई
एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा।।
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी।।
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ। राम नाम बिनु सोह न सोऊ।।
बिधुबदनी सब भाँति सँवारी। सोन न बसन बिना बर नारी।।
सब गुन रहित कुकबि कृत बानी। राम नाम जस अंकित जानी।।
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस संत गुनग्राही।।
जदपि कबित रस एकउ नाही। राम प्रताप प्रकट एहि माहीं।।
सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसंग बडप्पनु पावा।।
धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसंग सुगंध बसाई।।

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