1.1.104

चौपाई
संभु चरित सुनि सरस सुहावा। भरद्वाज मुनि अति सुख पावा।।
बहु लालसा कथा पर बाढ़ी। नयनन्हि नीरु रोमावलि ठाढ़ी।।
प्रेम बिबस मुख आव न बानी। दसा देखि हरषे मुनि ग्यानी।।
अहो धन्य तव जन्मु मुनीसा। तुम्हहि प्रान सम प्रिय गौरीसा।।
सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं।।
बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू। राम भगत कर लच्छन एहू।।
सिव सम को रघुपति ब्रतधारी। बिनु अघ तजी सती असि नारी।।
पनु करि रघुपति भगति देखाई। को सिव सम रामहि प्रिय भाई।।

दोहा/सोरठा
प्रथमहिं मै कहि सिव चरित बूझा मरमु तुम्हार।
सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त बिकार।।104।।

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