1.1.153

चौपाई
सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी। जो गिरिजा प्रति संभु बखानी।।
बिस्व बिदित एक कैकय देसू। सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू।।
धरम धुरंधर नीति निधाना। तेज प्रताप सील बलवाना।।
तेहि कें भए जुगल सुत बीरा। सब गुन धाम महा रनधीरा।।
राज धनी जो जेठ सुत आही। नाम प्रतापभानु अस ताही।।
अपर सुतहि अरिमर्दन नामा। भुजबल अतुल अचल संग्रामा।।
भाइहि भाइहि परम समीती। सकल दोष छल बरजित प्रीती।।
जेठे सुतहि राज नृप दीन्हा। हरि हित आपु गवन बन कीन्हा।।

दोहा/सोरठा
जब प्रतापरबि भयउ नृप फिरी दोहाई देस।
प्रजा पाल अति बेदबिधि कतहुँ नहीं अघ लेस।।153।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: