1.1.176

चौपाई
काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा। भयउ निसाचर सहित समाजा।।
दस सिर ताहि बीस भुजदंडा। रावन नाम बीर बरिबंडा।।
भूप अनुज अरिमर्दन नामा। भयउ सो कुंभकरन बलधामा।।
सचिव जो रहा धरमरुचि जासू। भयउ बिमात्र बंधु लघु तासू।।
नाम बिभीषन जेहि जग जाना। बिष्नुभगत बिग्यान निधाना।।
रहे जे सुत सेवक नृप केरे। भए निसाचर घोर घनेरे।।
कामरूप खल जिनस अनेका। कुटिल भयंकर बिगत बिबेका।।
कृपा रहित हिंसक सब पापी। बरनि न जाहिं बिस्व परितापी।।

दोहा/सोरठा
उपजे जदपि पुलस्त्यकुल पावन अमल अनूप।
तदपि महीसुर श्राप बस भए सकल अघरूप।।176।।

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