चौपाई
तिन्हि देइ बर ब्रह्म सिधाए। हरषित ते अपने गृह आए।।
मय तनुजा मंदोदरि नामा। परम सुंदरी नारि ललामा।।
सोइ मयँ दीन्हि रावनहि आनी। होइहि जातुधानपति जानी।।
हरषित भयउ नारि भलि पाई। पुनि दोउ बंधु बिआहेसि जाई।।
गिरि त्रिकूट एक सिंधु मझारी। बिधि निर्मित दुर्गम अति भारी।।
सोइ मय दानवँ बहुरि सँवारा। कनक रचित मनिभवन अपारा।।
भोगावति जसि अहिकुल बासा। अमरावति जसि सक्रनिवासा।।
तिन्ह तें अधिक रम्य अति बंका। जग बिख्यात नाम तेहि लंका।।
दोहा/सोरठा
खाईं सिंधु गभीर अति चारिहुँ दिसि फिरि आव।
कनक कोट मनि खचित दृढ़ बरनि न जाइ बनाव।।178(क)।।
हरिप्रेरित जेहिं कलप जोइ जातुधानपति होइ।
सूर प्रतापी अतुलबल दल समेत बस सोइ।।178(ख)।।