1.1.256

चौपाई
सखि सब कौतुक देखनिहारे। जेठ कहावत हितू हमारे।।
कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं। ए बालक असि हठ भलि नाहीं।।
रावन बान छुआ नहिं चापा। हारे सकल भूप करि दापा।।
सो धनु राजकुअँर कर देहीं। बाल मराल कि मंदर लेहीं।।
भूप सयानप सकल सिरानी। सखि बिधि गति कछु जाति न जानी।।
बोली चतुर सखी मृदु बानी। तेजवंत लघु गनिअ न रानी।।
कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा। सोषेउ सुजसु सकल संसारा।।
रबि मंडल देखत लघु लागा। उदयँ तासु तिभुवन तम भागा।।

दोहा/सोरठा
मंत्र परम लघु जासु बस बिधि हरि हर सुर सर्ब।
महामत्त गजराज कहुँ बस कर अंकुस खर्ब।।256।।

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