1.1.262

चौपाई
प्रभु दोउ चापखंड महि डारे। देखि लोग सब भए सुखारे।।
कोसिकरुप पयोनिधि पावन। प्रेम बारि अवगाहु सुहावन।।
रामरूप राकेसु निहारी। बढ़त बीचि पुलकावलि भारी।।
बाजे नभ गहगहे निसाना। देवबधू नाचहिं करि गाना।।
ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा। प्रभुहि प्रसंसहि देहिं असीसा।।
बरिसहिं सुमन रंग बहु माला। गावहिं किंनर गीत रसाला।।
रही भुवन भरि जय जय बानी। धनुषभंग धुनि जात न जानी।।
मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी। भंजेउ राम संभुधनु भारी।।

दोहा/सोरठा
बंदी मागध सूतगन बिरुद बदहिं मतिधीर।
करहिं निछावरि लोग सब हय गय धन मनि चीर।।262।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: